एक किसान की व्यथा:-


में हलधर का वारिस...



में हलधर का वारिस चुप कैसे रहता ?
सब कुछ सहता लेकिन सत्ता के लोलुप वादे कैसे सहता ?

कभी तपन सही शोलो की, कभी सर्द रात ने ठिठुराया है ।
कभी भूख से बेबस होकर रूखा-सूखा खाया है ।।
अब लाचारी की जद में आकर अपनी दासता कहता
में हलधर का वारिस चुप कैसे रहता ?
सब कुछ सहता लेकिन सत्ता के लोलुप वादे कैसे सहता ?

सत्ता की कुर्सी पाने को, नेताजी गाँव का रुख अपनाते है ।
व्यथा देख कर घर आंगन की घड़ियाली आंसू बहाते है ।।
हुआ दूर फिर क्यों मद में आकर, वो जन-जन का चहेता
में हलधर का वारिस चुप कैसे रहता ?
सब कुछ सहता लेकिन सत्ता के लोलुप वादे कैसे सहता ?

लहलाते खलिहानों का मेने नित नूतन श्रंगार किया।
मुक्त हस्त से हस्ते गाते अन्न का उपहार दिया ।।
आज कर्ज के बोझ तले में अपनी जुबानी कहता
में हलधर का वारिस चुप कैसे रहता ?
सब कुछ सहता लेकिन सत्ता के लोलुप वादे कैसे सहता ?

मेड़-मेड़ पर भटका हूँ में चहरे पर अपने शिकन लिए
तृप्त किया सबकी इच्छा को, अपने सपनो को दफ़न किए
मुखर हुए जब लब मेरे, तब पानी की बौछारे सहता
में हलधर का वारिस चुप कैसे रहता ?
सब कुछ सहता लेकिन सत्ता के लोलुप वादे कैसे सहता ?

Heartbeats of youth

कमल जाट
अलवर, राजस्थान