प्यार भरे मुक्तक||गुनगुनाये हर दिल

सुहाना था सफर मेरा , सुहानी थी वो सौगाते
भूला दू सारी दुनिया पर भुलाऊँ कैसे वो बाते
तलब थी एक पुरानी वो ये धरा सदियों से थी प्यासी
हुई क्यों बंजर जमी में अब ये बेमतलब सी बरसाते ।।

चाह थी पाने की तुझको, विरह ना हमे गवारा था
तेरे पलको की छांव में हमने खुद को संवारा था
दिल -ए- जागीर नीलामी में हम सब कुछ गवा बैठे
सुना था हमने लोगो से , वो सौदागार हमारा था ।।

सहारा एक मेरा वो था, सहारा अब ना कोई है
डगर खाली है इस दिल की ना इसमे कोई बटोही है
ये यादें तेरी जीने ना देती मुझको तन्हा लम्हों में
तड़पता में भी रातो में नींदे तुमने भी खोई है ।।

में लिखता हूं तुझे अब तक कलम है तेरी दीवानी
तू ठहरी है मुझ में जैसे निश्चल झील का पानी
कभी तुझमे जो खिलता था वो सच्चा मान था तेरा
बिन कमल के अधूरी है वो तेरी पूरी जवानी ।।

कभी आंखों से जो छलका वो गम मे सह नही सकता
तू जन्नत है मेरी हमदम में तुझ बिन रह नही सकता
है तुझसे प्यार मुझे कितना अगर तू देखना चाहे
फ़क़त आंखे ये बया करती  में लबों से कह नही सकता ।।

वफ़ा की मूरत थी जिसमे वो बेवफ़ा हो नही सकती
राह में छोड़कर मुझको वो चैन से सो नही सकती
तन्हा गुजरी उन रातो में चाह उसको भी थी मेरी
सुर्ख़ आंखे थी गवाह जिसकी छुपाकर रो नही सकती ।।

कमल जाट
अलवर, राजस्थान
9667616433