यह कविता आज के युग मे मानव को अपना सही आईना दिखाती है, साथ ही सरकारी तंत्र की विफलता पर किया गया एक कटाक्ष है । यह समसामयिक समस्याओं को सही रूप में परिभाषित करने का एक सार्थक प्रयास है ।
गंगा माँ की पुकार
कभी पुष्प अर्पित कर मुझमें
मेरा किया उद्धार
आज शवों से अटी पड़ी हूं
क्यों तूने दिया मुझे दुत्कार ?
नतमस्तक था सदियों से तू
बोले हर-हर गंगा
शमशानों की रस्में भूले
नाचे नाच अब नंगा
तट पर मेरे गूंज रही है
मनकुंठित चित्कार
आज शवों से अटी पड़ी हूं
क्यों तूने दिया मुझे दुत्कार ?
सुप्त हुईं मानवता तुम्हारी
सुप्त हुई यज्ञज्योति
अंतस्तल में दबे रह गए
अनगिनित सीप और मोती
निर्लज्जता की सीमा लांघ
भूल गया सेवा सत्कार
आज शवों से अटी पड़ी हूं
क्यों तूने दिया मुझे दुत्कार ?
अपनी हर एक खामी पर
अब मूक हुई ये सरकार
आज रक्त से रंजित है
यह मेरी अविरल धार
रूप बनाकर बहुरूपिया
तूने किया मेरा अपकार
आज शवों से अटी पड़ी हूं
क्यों तूने दिया मुझे दुत्कार ?
बेख़ौफ़ श्वानों के झुंड
तट पर करते सैर सपाटा
खामोशी अब मार रही है
लाचारी का चाँटा
पीर हरो हे दाता अब तुम
गंगा माँ की यही पुकार
आज शवों से अटी पड़ी हूं
क्यों तूने दिया मुझे दुत्कार ?
Written by-
कमल सिंह
अलवर, राजस्थान
9667616433
2 Comments
Superb ❤💕💖
ReplyDeleteआभार दिल से ।
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