प्रिये दोस्तो, यह एक ऐसी कहानी है जिसमे एक किशोर के जीवन को सही रूप में परिभाषित करते हुए एकता के सूत्र में पिरोया गया है । जाने अनजाने आप भी इस कहानी के किसी अंश के किरदार हो सकते है । आशा है आप सबको यह कहानी पसंद आएगी । कहानी को पढ़ने के बाद, आपको यह कहानी कैसी लगी, इसके लिए आप अपने सुझाव कमेंट बॉक्स के रूप में जरूर दे । आपके सुझाव ही एक नई रचना की दिशा व दशा तय करेंगे साथ ही मुझमे एक नई ऊर्जा का संचार करेंगे ।



  1.                      "एक्स्ट्रा क्लास"


यौवनारम्भ की दहलीज पर खड़ा में बहुत दूर तक ताक रहा था । परंतु क्षितिज से पहले ही सूर्य की चकाचौंध ने मेरी दृष्टि को ओझल कर दिया । में कुछ समझ पाता इससे पहले ही मौसम ने करवट बदली और पूर्व दिशा से आती हुई उन सुकून देने वाली पूर्वाइयो ने उमड़ते बादलो को अपने आगोश में ले लिया । मेरी शरारती बाते और ब्लैक & व्हाइट पेन्ट शर्ट   के कॉम्बिनेशन में दिलचस्पी लेते हुए उसने अपने दिल मे हम दोनों के रहने के लिए एक घरोंदा बना ही लिया था । लंच के समय लंच साझा करना हमारी परंपरा बन चुकी थी । उसकी बनाई हुई पेंटिंग ने मुझे उसका कायल बना ही दिया । उस पाठशाला की अंतिम कक्षा में हमे बहुत बार अपनेपन का एहसास हुआ । इसी तरह के एक एहसास का हिस्सा बना हमारी कक्षा का कमरा नंबर 9 , जिसमे लगा श्यामपट्ट हमारे अपनेपन का गवाह बना । उस कक्षाकक्ष से अब बच्चो का शोरगुल थम चुका था और वह शांत कमरे में हमारी सांसो में समा चुका था । न जाने कब में उसे कमरे की टेबल तक ले गया, जिस पर अब ना तो कोई अटेंडेंस रजिस्टर था और ना ही कोई पुस्तक सिर्फ था तो केवल उसका निमंत्रण देता हुआ यौवन ।  न जाने कितनी ही ऐसी एक्स्ट्रा क्लास छुट्टी के बाद होने लगी। वह मुझे सिखाती रही और में सीखता रहा । इन एक्स्ट्रा क्लासेज को तो में बारी बारी से पास करता रहा परन्तु जीवन की न जाने कितनी ही वास्तविक क्लासेज को में पीछे छोड़ता जा रहा था । उन सतरंगी क्षणों में मैने अपनी मंजिल को एक तरफ धकेल दिया था, तथा एक ऐसे हाशिये पर खड़ा हो गया जहाँ से लौटकर आना बहुत ही मुश्किल था । इन सब विचारो की श्रृंखला में भी मेरा लड़कपन मुझ पर हावी रहा और कुछ महीनों का वह समय कुछ क्षणों जैसा व्यतीत हो गया । शीघ्र ही पाठशाला का सत्रावसान हो गया । उसने अब एक गर्ल्स कॉलेज में दाखिल ले लिया, परन्तु यह एकाकीपन इस दिल को गवारा न था । घर मे सारे एशोआराम होते हुए भी उसकी चाह ने मुझे उसकी गली का कियाएदार बना दिया । उसके घर के आस पास आवारा बादलो जैसे मंडराना मेरी दिनचर्या का हिस्सा बन चुका था । उसके रसोईघर से आती हुई पकवानों की सुगंध मुझे उसका आभास दिला ही देती थी । शाम को उसके मंदिर जाते समय गली का वह मोड़ न जाने कितने हसीन पलो का सारथी बन चुका था । गली का वह पार्क हमे अपनी और आकर्षित करता था, जिसमे टोपी वाला वह माली हमे देखकर अपनी जवानी के दिनों को याद करता हुआ सीटी बजाते हुए आगे निकल जाता था । पार्क की बहती हुई हवा में उसके लहराते हुए बाल हवा की ताजगी को और बढ़ा देते थे । पास के फूलों पर मंडराते भंवरे हमारी बातो का रसपान करते हुए फूलो पर शांत बेठ जाते । पड़ोसियों की उपेक्षा करते हुए मकान मालिक की अनुपस्थिति का फायदा उठाना हमारी फितरत बन चुकी थी, घंटो तक बतियाने के बाद हमारे दिल मे सागर हिलोरे लेने लगता और हम एक-दूजे के आगोश में डूब जाते । सब कुछ ठीक चलता रहा । अचानक से समय ने करवट बदली और जैसे कि खुशियो को ग्रहण लग गया । महीनों की बंदिशो के बाद फिर से वही चेहरा उस गली से गुजरा पर अब वह अपना तेज खो चुका था, यह वही चेहरा था जिसे में हर बार पढ़ लिया करता था पर आज वह कुछ धुंधला सा नज़र आया जिसे में चाहकर भी ना पढ़ पाया। मेने अपने आप को उसकी भावशून्य नज़रो में ढूंढने की लाख कोशिशें की लेकिन उनमें मुझे एक खालीपन नज़र आया । इसके बाद ना जाने कितनी ही राते करवटे बदलती हुई बीतने लगी । गुजरते समय के साथ अब में समझ चुका था, की बदलाव एक प्रकृति का नियम है, और अब उस वसंत का पटाक्षेप हो चुका है। लेकिन वह गुजरा हुआ वसंत मुझे बहुत से नए अनुभव दे गया ।

आपके सुझावों की प्रतीक्षा में...

कमल जाट
अलवर, राजस्थान
9667616433