आरजू है तेरी मुझको, तन्हाई रास ना आए
निशा ख्वाबो की जननी है, ये दिन भी ढल नही पाए 
तुझे पाने की हसरत अब भी दिल मे है मेरे बाकी 
में तुझसे कह नही पाऊँ, तू मुझसे कह नही पाए ।

जुस्तजू है तुझे पाने की, हम लाचार बैठे है
खता हमसे हुई कैसी, क्यों अनजान बैठे है ?
मुझे सोहरत से नफरत है मुझे दौलत से नफरत है
लुटाकर तुम जो बैठे हो, भुलाकर हम जो बैठे है ।

मेरे रिश्तों की गहराई, मुझे बेचैन करती है
कोई तो नाम दो इसको, ना ये गुमनाम जँचती है 
हुई अब भोर की बेला भ्रमर मिलने को है आतुर
ना में इनकार करता हूँ, ना तुम इज़हार करती हो ।

मिलन कि आस है बाकी, विरह ना हमे गवारा है ।
लहर सागर में जो उठती, इसका बस तू ही किनारा है
अश्क़ तुमने भी छुपाए है, रस्म-रिवाजो की खातिर
मुक़म्मल प्यार हमारा है, मुक़म्मल प्यार तुम्हारा है ।

युवा कवि-
कमल जाट
अलवर, राजस्थान
9667616433