राजस्थानी कविता

राजस्थानी संस्कृति रो मान बढ़ाबा री खातिर म्हारी लिख्योड़ी कविता  'बीरबहूटी' थारी उम्मीदा सू भरपूर:-


               बीरबहूटी 

घणी सुथरी डोकरी, रिपट-रिपट री चाल
मखमल री चमड़ी जदे, निकट ताल री पाल ।।

नई नवेली बिदणी, सरपट दौड़ी जाय
लाल ओढ़णी ओढ़ चली, हिवड़े म्हारे भाय ।।

छोटी-मोटी डोकरी, रेतीले धोरे माय
लग्यो हाथ रो ठेस्लो, झट गुमटी बण जाए ।।

आषाढ़ रो कीट ई, मेघा में झट आए
राम जी री डोकरी, टाबरां री छोटी गाय ।।

माटी रो उपजाऊपण, डोकरी री गेल
बीरबहूटी कीट रो, लोग निचोड़े तेल ।।

जद खेता छिड़के दबा, फटके ना इब पास 
माणुष इब बेरी भयो, कियो कीट रो नाश ।।

कमल सिंह
अलवर, राजस्थान
9667616433