देशभक्ति कविता

   आओ मिलकर प्रणय करे हम


आओ मिलकर प्रणय करे हम, भारत माँ की थाती पर

जैसे दादुर मिलकर बोले, जिस चोखट बरसाती पर ।।


जात-पात का मिटे भेद यहा, मानव सब की जाती हो

वाणी में हो सुचिता जैसे, कोयल कूक सुनाती हो

प्रीत का अंकुर फूटेगा, सुप्त पड़ी हर छाती पर ।

आओ मिलकर प्रणय करे हम, भारत माँ की थाती पर

जैसे दादुर मिलकर बोले, जिस चोखट बरसाती पर ।।


तनकर खड़ा हुआ, जिसके सीने पर एक तिरंगा हो

कैसे भूले उसकी महिमा, जिसके कठौती में गंगा हो

सुंदर सा एक उपवन उपजे, इस धरती इठलाती पर ।

आओ मिलकर प्रणय करे हम, भारत माँ की थाती पर

जैसे दादुर मिलकर बोले, जिस चोखट बरसाती पर ।।


रहे अमन और चैन रहे यहां, कभी ना कोई दंगा हो

खेले कूदे पले बड़े सब , हर जन मस्त मलंग हो

मिटे विरह का शूल यहां, इस वसुमति कहराती पर।

आओ मिलकर प्रणय करे हम भारत माँ की थाती पर

जैसे दादुर मिलकर बोले, जिस चोखट बरसाती पर ।।


ऋषी मुनियों की तप भूमि का, बना सदा सम्मान रहे

विस्मृत ना हो तप उनका भी, जो रक्षा में सीना तान रहे

सहेज रखे हम शोहरत उनकी, दाग लगे ना ख्याति पर ।

आओ मिलकर प्रणय करे हम, भारत माँ की थाती पर

जैसे दादुर मिलकर बोले जिस, चोखट बरसाती पर ।।