आज के मनुष्य की कुंठित मानसिकता का दंश सह रही यह धरा, मेरे द्वारा रचित कविता, "हे मानव ! तुझे धिक्कार" के माध्यम से न केवल मानव का वास्तविक रूप उजागर करती है, बल्कि संवेदनशील मनुष्य जाति को पर्यावरण संरक्षण का संदेश देते हुए प्रकृति को बचाने की मार्मिक अपील करती है ।      


       "हे मानव ! तुझे धिक्कार"


सदियों पुराने घावों का मै,
करती रही उपचार ।
फिर क्यों संकुचित कर दिया,
तूने मेरे आँचल का विस्तार ?
हे मानव ! तुझे धिक्कार
हे मानव ! तुझे धिक्कार।।

बहती नदिया, गिरते झरने, 
पहाड़ो का उपहार दिया ।
इंद्रधनुष सी छटा बिखेरे,
खलिहानों का श्रृंगार किया ।
फिर क्यों मेरे यौवन पर,
तूने किया प्रहार ?
हे मानव ! तुझे धिक्कार
हे मानव ! तुझे धिक्कार।।

जीवन के पथ पर बढ़ने को,
प्राणवायु का दान दिया ।
दिन-रात धधकती चिमनी ने,
इसमे भी विष घोल दिया ।
जो अनुपम रूप मेरा था,
क्यों तूने इसे दिया दुत्कार ?
हे मानव ! तुझे धिक्कार
हे मानव ! तुझे धिक्कार।।

क्षुधा को अपनी तृप्त करने,
जीवो का संहार किया ।
मन का दानव हुआ प्रबल तब,
मूल्यों को दरकिनार किया ।
इतने पर भी मौन रही में,
देख ये तेरा अत्याचार ।
हे मानव ! तुझे धिक्कार
हे मानव ! तुझे धिक्कार ।।

उम्मीदों के पंख लगाए,
गर्भ भी मेरा चीर दिया ।
रही करहाती अंतस्तल में,
मुझको इतना अधीर किया ।
पंचतत्व से जो किया खिलवाड़,
सजा मिली तब हाहाकार ।
हे मानव ! तुझे धिक्कार
हे मानव ! तुझे धिक्कार ।।

सही भयंकर त्रासदियां मेने,
माँ के आँचल सा आभास दिया ।
कभी ना छोड़ा तुझे अकेला,
चोली दामन सा साथ दिया ।
और अधिक पाने की चाह में,
क्यों विस्मृत किया ये अवतार ?
हे मानव ! तुझे धिक्कार
हे मानव ! तुझे धिक्कार ।।

जो भी था दामन में मेरे,
मुक्त हस्त से लुटा दिया ।
अपना-पराया भेद ना देखा,
जीवन का आधार दिया ।
स्वार्थ में क्यों अंधा होकर,
भुला दिया मेरा उपकार ?
हे मानव ! तुझे धिक्कार
हे मानव ! तुझे धिक्कार।।

कल की चिंता छोड़,
आज में इतना क्यों तल्लीन हुआ ?
नष्ट-भ्रष्ट कर दिया धरा को,
नभ भी अब मलिन हुआ ।
मर्मभेदी, हे मनुज !  जाग जा,
धरती माँ की यही पुकार ।
हे मानव ! तुझे धिक्कार
हे मानव ! तुझे धिक्कार ।।

युवा कवि-
कमलसिंह
अलवर, राजस्थान
9667616433
Kamalsingh823814@gmail.com