मेरी खता क्या है ?



  
लिखूं हर फलक पर तुझे, ये वक़्त का तकाजा है 
लौट आ अब इस उजड़े चमन में, बता मेरी खता क्या है ?

उल्फ़ते इस जहाँ में, अजनबी हुए तुम पनाह में 
क्यों बिगुल बजा कर मुकर गए ? इस अनजानी सी राह में 
हम परिंदे होकर भी उड़ ना सके, पर तेरी रज़ा क्या है ?
लौट आ अब इस उजड़े चमन में , बता मेरी खता क्या है ?

तलब लगी है अब तेरे चक्षुओं की, जिन्होंने अरि सा वार किया 
हम ठहरे रहे जमी पर ही, तुमने तो नभ को भी पार किया 
अब मुक्त कर मुझे इन जंज़ीरों से , बता हम दोनों का वास्ता क्या है ?
लौट आ अब इस उजड़े चमन में, बता मेरी खता क्या है ?

तेरे इश्क़ के दस्तख़त है इस दिल की जागीर पर 
सरहदे लांघ कर सारी, अब इश्क़ में नुमाईश कर 
आ यू छलक मेरी रुह से, कि लोग भी कहे, आख़िर फरिस्ता क्या है ?
लौट आ अब इस उजड़े चमन में, बता मेरी खता क्या है ?
लिखूं हर फलक पर तुझे, ये वक़्त का तकाजा है ।
                       युवा कवि
                       कमल जाट
                       अलवर, राजस्थान
                       9667616433